Sep 22, 2014

आज का मैं


- रंजीत बनर्जी -


बेख़ौफ़ था कभी, आवाज़ में थी बुलंदगी
हकीकत का सामना जब हुआ
मेरी आवाज़ की बुलंदगी जाती रही ,
एक सहमा सा इन्सान का साया बन रह गया |
इंसानियत जब झांकती मेरी आँखों में,
इंसानियत से आंखे मिलाने की हिम्मत नहीं होती |
मैं आंखे बंद कर लेता हूँ, कि इंसानियत जाये, तो आंखे खोलूं |
कुछ जलन सी है दिल में, खुद पर रंजिश है इस हालत के लिए
क्या कुछ न करने की तमन्ना थी दिल में
कुछ न करने की ख्वाहिश लिए अब बैठा हूँ दिल में |

रंजीत / ३०/०७/१४



© Ranjit Banerjee

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