- रंजीत बनर्जी -
पिछ्ली बार कब, तुम इतना हसें कि रो पड़े तुम,
पिछ्ली बार कब, खुशियों के झरने मे नहाया तुमने,
जिन्दगी की खोज मे जिन्दगी खो गयी,
पिछ्ली बार कब, जिन्दगी का ज़ायका लिया तुम ने ।
तन की भूख मिटाये, मिटती है
मन की भूख मिटाये, नहीं मिटती ।
तन को तो कई बार सजाया तुमने,
पिछ्ली बार कब, मन को संवारा तुमने ।
जो न मिला उसके गम में जिन्दगी ग़वाया तुमने ,
जो मिला उसकी खुशियों का, कब ज़ायका लिया तुम ने ।
पिछ्ली बार कब, जिन्दगी का ज़ायका लिया तुम ने ।
© Ranjit Banerjee
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